मंगलवार, 13 जुलाई 2010

प्रार्थना : एक अजन्मी बेटी की

माँ ,
मैं अभी आई नहीं
तुम्हारी दुनिया में , ना ही
जानती हूँ भाषा तुम्हारे देस की
ना ही व्याकरण ,
ना रस , छंद , अलंकार
ना ही पर्याय ,
किन्तु सुना है मैंने
जीवन का 'रस ' होती है ' बेटी ',
माँ - पिता का जीवन ' छंदमय ' हो जाता है
एक बेटी के आने से ,
परिवार का ' अलंकार '
होती है ' बेटी '।
और , यह भी सुना है मैंने
कई ' पर्याय ' हैं मेरे ' नाम ' के
मैं 'पुत्री ' हूँ ...
क्यूंकि ' प्राप्ति ' हूँ तुम्हारी ,
' दुहिता ' हूँ ...
सबके ' हितों ' की रक्षक ,
'तनया ' हूँ मैं ...
तन के रक्त से बनी हूँ तुम्हारे ,
' तनूजा ' हूँ तुम्हारी ...
तुम्हारी ही काया का एक अंश हूँ मैं ।
'आत्मजा ' भी हूँ मैं ....
तुम्हारे आत्म से निर्मित

माँ ,
इतने पर्याय हैं मेरे ,
किसी एक पर्याय के लिए तो ,
मुझे जीवित रहने दो ......

मुझे मत मारो , माँ ...... ।

शनिवार, 10 जुलाई 2010

मैं कहती आंखन की देखि .........

पिछले माह में facebook पर मेरे मित्रो ने यह जिज्ञासायें व्यक्त करीं कि ...मेरी आध्यात्मिक यात्रा कब और कैसे शुरू हुई ....क्या मैं इन विषयों पर विश्वास करती हूँ ...मेरे गुरुदेव कौन हैं ...कहाँ हैं ...क्या मेरी दीक्षा हो चुकी है ...किस परम्परा के अंतर्गत आती हूँ ......प्रश्न बहुत सारे हैं ... आज मैं अपने जीवन की कुछ ऐसी घटनायें आप सभी के साथ शेयर करने जा रही हूँ जो अक्सर किताबों में पढने को मिलती है लेकिन अक्सर व्यक्ति उन्हें कपोल कल्पना कह देते हैं ...हाँ , आप सब को यह विश्वास से कह सकती हूँ कि ये सारी घटनायें बिलकुल सत्य हैं...........
आज से १२ वर्षो पहले की घटना है कि जब मेरे बड़े भाई अतुल अस्वस्थ होकर लखनऊ के एक अस्पताल में भर्ती थे । रोजाना ही अस्पताल जाना होता था । वहां के स्टाफ में एक लडकी थी ...' फरहा ' । मेरी हमउम्र थी, अतः जल्दी ही मेरी अच्छी मित्र बन गयी । एक रोज जब मैं सवेरे अस्पताल पहुँची तो फरहा ने आकर बहुत हैरानी वाले स्वर में कहा कि ...अनामिका , कल शाम बहुत ही अजीब घटना हुई ...यहाँ एक युवा लडकी आई हुई थी ....उसने आकर मुझसे कहा कि तुम्हारा जो अफेयर चल रहा है , वह असफल हो जाएगा क्यूंकि तुम्हारा मित्र तुम्हे धोखा दे रहा है ......उस लडकी से मैं पहले कभी नहीं मिली थी तो मैंने उस से यह पूछा कि आप यह कैसे कह रही हैं । उस लड़की ने जवाब दिया कि मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ बल्कि कल मुझे देखने एक व्यक्ति यहाँ आये थे ..उन्होंने तुम्हे देखा था ...उन्होंने ही तुम्हारे बारे में यह कहा था और यह भी कहा था मैं तुम्हे सावधान कर दूं ..., मैंने उस लडकी से कहा कि जो व्यक्ति आये थे उन्होंने ना तो मेरा हाथ देखा ना ही जन्म कुण्डली देखी फिर यह बात उन्होंने कैसे कह दी ??? उस लडकी ने कहा कि उन्हें यह सब अपने आप ही पता चल जाता है ... परमात्मा की कृपा है उन पर...फिर मैंने उस लडकी से कहा कि मैं उन से मिलना चाहती हूँ । उसने कहा कि वे तो एकांत में रहते हैं , किसी से मिलते नहीं ....फिर भी प्रयास करूंगी । मैंने उस लडकी का फोन नंबर ले लिया था । अभी फ़ोन किया था तो शाम का वक़्त मिला है ...तुम भी चलो ..अकेले जाने में अजीब सा लगेगा ...मैंने फरहा से कहा ठीक है मैं भी चलूंगी , अतुल भैया के स्वास्थ्य के बारे में कुछ पूछ लूंगी । मुझे नहीं मालूम था कि आने वाली यात्रा मेरे जीवन की दिशा एवं दशा दोनों को परिवर्तित करने जा रही है......
शाम को हम उनके आवास पर पहुचे । किसी व्यक्ति ने हमें एक कक्ष में बैठा दिया और कहा कि वे अभी आ ही रहे हैं ...कुछ क्षणों के बाद ही एक अत्यंत सौम्य व्यक्ति सफ़ेद धोती एवं सफ़ेद कुरते में आये । जब तक हम कुछ कहते उन्होंने स्वं ही हमें प्रणाम कर लिया । फिर मौन बैठ गए कुछ पलों के बाद उन्होंने फरहा की और प्रश्न वाचक दृष्टी से देखा । फरहा ने वार्ता प्रारंभ करते हुए कहा कि कल आपने मेरे बारे में जो कुछ कहा ..वह कैसे कहा ...वे कुछ देर तक तो मौन रहे फिर कहने लगे ...सत्य ही कहा है .वह युवक तुम्हारे साथ छल कर रहा है ...फरहा ने कहा कि यह बात हम दोनों के ही परिवार वाले जानते हैं ...और हम शीघ्र ही विवाह करने जा रहे हैं ....यह सुन कर उनके स्वर में एक तेजव्सिता प्रकट हुई ...वे बोले तुम्हारा यहाँ विवाह नहीं होगा । तुम मुझसे छोटी हो फरहा ...तुम्हारे मन को मैं दुख पंहुचा रहा हूँ ,...मुझे क्षमा कर देना ...लेकिन यह सच है ...क्यूंकि वह लड़का विवाहित है ... ..फरहा के स्वर एवं चहरे में क्रोध एवं दुःख दोनों प्रगट हो गए ....यह नहीं हो सकता । पता नहीं आप कैसी बाते कर रहे हैं ...बिना जाने बूझे ....मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था , लगा फरहा कहीं रो न पड़े । वे एक दम मौन थे ...फिर बोले इसलिए ही तो फरहा मैंने तुमसे पहले ही क्षमा मांग ली थी ....ध्यान रखना अपना ...यह कह कर उठे और चले गए ....हम दोनों भी अस्पताल वापस आ गए ....

अतुल भैया स्वस्थ हो कर घर आ गए थे । मैं इस घटना को लगभग भूल चुकी थी । एक दिन फरहा का फोन आया । वह मिलना चाहती थी । मैं मिलने पहुँची तो फरहा को देख कर आश्चर्य में रह गयी ...फरहा बहुत कमजोर हो गयी थी , चेहरा पीला था । मैं मिली तो वह रो पडी उसने कहा जो कुछ भी उन्होंने कहा था सब सच निकला । वह लड़का विवाहित निकला और उसके एक छोटी बेटी भी है । मुझे बहुत बड़ा धोखा मिला है अनामिका । मैं हैरान थी । मैंने उस से कहा कि तुम दुबारा उनसे नहीं मिली ??? फरहा ने कहा कि कई बार फोन किया था लेकिन पता चला कि वे अक्सर बाहर ही रहते हैं कभी कभी लखनऊ आते हैं । आज वे शहर में हैं इसलिए ही तुम्हे फोन किया था कि मैं उनसे मिलने जा रही हूँ तुम भी चलो
कुछ देर बाद हम लोग उनके आवास पर थे । फरहा उन्हें देखते ही रो पडी । उन्होंने किसी व्यक्ति को आवाज़ दे कर पानी लाने को कहा और यह भी कहा इनके लिए चाय ले कर आओ ...फिर फरहा से कहा कि कुछ चीज़े नियति में ही होती हैं , वह होकर रहती हैं । अपना संतुलन बना कर रखो । फिर बोले कुरआन शरीफ का पाठ करती हो । फरहा ने कहा हाँ ..वे बोले रोजाना किया करो बिना किसी व्यवधान के । फिर कुरआन शरीफ के बारे में उस से बात करने लगे । उनका कुरआन एवं इस्लाम के बारे में ज्ञान देख कर फरहा और मैं हैरान हो गए । फरहा स्वं इतना नहीं जानती थी , जितना वे नमाज़ व अन्य इस्लामी कर्म काण्ड के बारे में जानते थे । हम लोग चाय पी चुके थे । फरहा ने कहा अब आगे क्या होगा ...??? वह मुस्करा पड़े बहुत ही आत्मीय स्वर में बोले कुरआन शरीफ का पाठ करती रहना ...बाकी सब अल्लाह पर छोड़ दो ....फरहा ने फिर से जोर दिया ...कुछ तो कहिये .... वे बोले विवाह हो जाएगा पर अभी नहीं ..अभी वक़्त लगेगा ....तब तक तुम्हे कुछ काम करते रहना चाहिए .....फरहा तब तक काफी संतुलित हो चुकी थी । मेरे मन में भी यह देख कर प्रश्न उठ रहे थे कि मेरा भविष्य क्या है ......उन दिनों मैं कम्प्यूटर सीख रही थी ...साहस कर के मैंने पूछ ही लिया ...कुछ मेरे बारे में बताइये .......आप के बारे में ....कुछ सोचते हुए से मौन हो गए ...फिर बोले आप तीन बहने हैं , एक भाई है ....आप सबसे छोटी हैं ......मैं गहरे आश्चर्य में आ गयी ..यह सब कैसे पता चल गया इन्हें ..... लेकिन आगे मैं क्या करूंगी ...??? उन्होंने बहुत ही धीरे से कहा .....आप योग जानती हैं ...??? मैंने कहा ' नहीं ' .... उन्होंने कहा सीख लीजिये .....फिर बोले संस्कृत जानती हैं.......??? मैंने फिर कहा नहीं .....उसे भी सीख लीजिये ......मैंने यह सुन कर कहा ये सब क्यूँ ...??? आपको भविष्य में आवश्यकता पड़ेगी ...मैं हैरान सी हो गयी ...पर मुझे इसकी आवश्यकता क्यूँ पड़ेगी ....??? मैंने सपने में भी कभी 'योग' या ' संस्कृत ' के सम्बन्ध में कभी नहीं सोचा था ...और फिर मैं कहाँ से यह सब कुछ सीखूं .....वे बोले अस्तित्व सब उत्तर दे देगा समय आने दीजिये ....योग एवं संस्कृत सीखने के लिए परीस्थितियां अपने आप ही निर्मित हो जायेंगी ....अभी सीख लेंगी तो ठीक है ...नहीं तो बाद में सीखना ही पड़ेगा ... .उनकी ये रहस्यपूर्ण बाते सुन कर मैं और फरहा दोनों अचम्भे में थे .....अच्छा ठीक है , यह कह कर वे उठने लगे ...तो मैंने पूछा कि अगर मैं फिर कभी आपसे मिलना चाहूँ तो क्या मिल सकती हूँ ...उन्होंने बहुत ही शान्ति से कहा कि मैं यहाँ कभी कभी ही आता हूँ ...वैसे यहाँ का नंबर आपके पास है ही ...फोन कर के पता कर लीजियेगा ........
उस शाम मैं एक हैरानी में लिपटी सी घर लौटी । घर आकर जब ये बाते मैंने सबको बताई तो सभी मुझ पर हसने लगे ... योगी जी ..योगी जी कह कर सभी मुझे परेशान करने लगे ......मुझे नहीं मालूम था कि आने वाला समय और भी कई आश्चर्य ले कर आ रहा है ....एक महीने बाद की घटना है , मेरी एक मित्र का फोन आया कि अनामिका लखनऊ विशवविद्यालय से योग का एक पाठ्यक्रम आरम्भ हो रहा है , ज्वाइन करोगी .....??? एक अचम्भा सा घिर आया मेरे चारो और ...योग कक्षायें सवेरे शुरू होनी थी ...मैंने ज्वाइन कर लिया ...उनकी कही हुई प्रथम बात सही निकल रही थी .....मैंने उनके आवास पर फोन किया तो पता चला कि वे बाहर गए हुए हैं कब तक आयेंगे यह नहीं कहा जा सकता .......मेरे मन में प्रश्न उठने लगे कि ये कौन हैं ....क्या करते हैं ...कहाँ जाते हैं ........क्यूंकि उनकी वेश भूषा से वे सन्यासी नहीं लगते ...और फिर धार्मिक उपदेश भी नहीं देते..परिवार भी नहीं दीखता....कई महीनो के उपरान्त जब मेरा योग का पाठ्यक्रम समाप्ति पर था ...तो मुझे पता चला कि वे आये हुए हैं .....उनके निवास पर फोन किया ...वे मिल गए ...प्रणाम कर के उनसे पूछा की मैं आना चाहती हूँ ......उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी .....यह भी कहा कि अच्छा किया फोन कर लिया ..क्यूंकि मुझे बाहर जाना है .....मैं नियत समय पर उनके आवास पर पहुँची । इस बार वहां स्थिति बदली हुई थी , आतंरिक कक्ष में कुछ व्यक्ति बैठे हुए थे और वे उनसे अध्यात्म सम्बंधित कुछ प्रश्न पूछ रहे थे और वे उत्तर दे रहे थे ...उन्होंने वही श्वेत वस्त्र पहने हुए थे श्वेत धोती एवं कुरता ... कुछ देर के बाद सभी लोगों के लिए चाय आ गयी ...मैं सोच में पद गयी कि यदी ये साधू हैं तो ' चाय ' क्यूँ पी रहे हैं ....तभी अचानक वे बोले ' चाय कोई अधार्मिक चीज़ तो होती नहीं , जो त्याग दी जाए ...क्यूँ अनामिका जी ...आपके क्या विचार हैं इस विषय पर ....मुझे लगा कि घड़ों पानी दाल दिया गया हो मुझ पर ... मैंने असमंजस से भरे स्वर में कहा ...जी ...आप ठीक कह रहे हैं ........वे मुस्कराते हुए चाय पीते रहे ...मुझे लगा कि क्या ये व्यक्ति के विचार पढ़ लेते हैं .......यह सोच रही ही थी कि उन्होंने कहा कि योग शिक्षा कहाँ तक पहुँची आपकी ....मुझे फिर हैरानी हुई कि ये कैसे जान गए कि मेरी योग की शिक्षा आरंभ हो चुकी है...मैंने कहा यह आपको कैसे पता ....इस प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही स्वं ही बोले ....वही हो रहा है ..जो निर्धारित था ...सब शुभ है ....आगे संस्कृत का अवसर भी आएगा ....ज्वाइन कर लेना ...मैंने पूछा .. कहाँ से अवसर मिलेगा ....जहां से 'योग ' का अवसर मिला ...बस वहीं से .....कह कर उठ गए ....कक्ष में कुछ ही लोग रह गए थे ...वहां एक स्त्री से मैंने पुछा कि इनके बारे में कुछ बताइए ...वह हैरानी से मुझे देख कर बोली आप इन्हें नहीं जानती ...हम तो सोच रहे थे कि आप इनकी परिचित हैं ...नहीं तो ' वार्ता ' में आपको नहीं बुलाते ....उन्होंने मुझे बताया कि ये उनके गुरुदेव हैं ...विवाह नहीं किया है ..अक्सर भ्रमण पर ही रहते हैं ....कोई आश्रम का निर्माण नहीं किया है , अत्यंत ज्ञानी व्यक्ति हैं ...सिद्ध हैं ....अतीन्द्रिय शक्ति संपन्न हैं .....अधिकतर समय एकांत में ही रहते हैं .... उनकी अतीन्द्रिय शक्ति के चमत्कार तो में देख ही चुकी थी ....वार्ता के क्रम में यह भी ज्ञात हो चूका था कि भिन्न विषयों पर इनका गहरा अधिकार है ......उन क्षणों में मुझे पता नहीं कहाँ से यह विचार आया कि क्या ये मुझे भी दीक्षा दे देंगे ....मैंने उस महिला से पूछा कि क्या ये दीक्षा भी देते हैं ......उसने कहा ....नहीं , ये किसी को दीक्षा नहीं देते हैं ... लेकिन हम सब इन्हें अपना गुरुदेव ही मानते हैं ....हाँ अगर आप उनसे अपने गुरुदेव के बारे में पूछेंगी तो ये अवश्य बता देंगें ......हम सब उनके आवास के बाहर आ चुके थे .....तमाम प्रश्नों में घिरी में अपने घर चली आयी ।
कई माह निकल गए थे ...मेरा योग का प्रशिक्षण पूर्ण हो गया था । कई बार उनके घर पर फोन किया तो पता चला कि नेपाल यात्रा पर हैं ...एक दिन मैं अपनी किसी मित्र के घर गयी हुई थी ..हम लोग बातें कर रहे थे कि सामने रखे अखबार पर मेरी नज़र गयी ....उस में एक समाचार निकला हुआ था कि ' रास्ट्रीय संस्कृत संस्थान ' संस्कृत के प्रारम्भिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ कर रहा है ...जो लोग ज्वाइन करना चाहें कर सकते हैं ......लगा अब उनकी दूसरी भविष्यवाणी भी सच निकलने वाली है ...संस्थान से मैंने जब संपर्क किया तो पता चला कि प्रशिक्षण आरम्भ हुए १५ दिन हो चुके हैं ...जो अखबार मैंने देखा था वह कोई पुराना अखबार था ....जब मैं संस्थान के निदेशक से मिली ...तो उन्होंने कुछ लोगों से बात कर के मुझे संस्कृत प्रशिक्षण में भाग लेने की अनुमति दे दी....उनकी दूसरी बात भी सच हो गयी थी ...
मेरा प्रशिक्षण आरम्भ हुए काफी समय हो चूका था ...एक दिन पता चला कि वे आये हुए हैं .... उनसे मिलने का समय लेकर मैं उनके आवास पर गयी ...उस दिन भी कई लोग आये हुए थे ....वे भारतीय परंपरागत साधना मार्गों पर गहनता से बता रहे थे ...उस दिन प्रथम बार मैंने उनकी वार्ता को ध्यान से सुना ...काफी सारी बाते मेरी समझ में भी नहीं आयी ...लेकिन यह एकदम निश्चित होता जा रहा था कि सामने बैठा व्यक्ति अत्यंत विशिष्ट है .....इसके ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ..किसी भी विषय पर ...किसी भी प्रश्न पर ...किसी भी दर्शन पर ...बहुत सहजता से बात कर रहे थे ....मेरे विस्मय की कोई सीमा नहीं थी .....वार्ता के क्रम में ही अचानक मुझसे बोले ...इस शब्द को संस्कृत में क्या कहते हैं .....अब तक तो काफी संस्कृत आ गयी होगी...इस बार मुझे हंसी आ गयी...मैंने कहा सब कुछ तो आप जान जाते हैं ...फिर मेरी परीक्षा क्यूँ ले रहे हैं....... सभी लोग मुस्कराने लगे ....वार्ता के अंत में जब सभी लोग अपने व्यक्तिगत प्रश्न पूछ रहे थे तब मैंने उनसे कहा कि मैं भी ध्यान करना चाहती हूँ ....मुझे भी कोई विधि बता दें .....तब उन्होंने कहा जब तुम्हारे गुरुदेव मिलेंगे तब विधि भी मिल जायेगी ....क्या मतलब आप मेरे गुरुदेव नहीं हैं .....वे हसने लगे ...मैं किसी का गुरु नहीं हूँ .....मैं तो स्वं ढंग से शिष्य बन जाऊं , यही काफी है .....यह सब लोग जबरदस्ती मुझे इस शब्द से संबोधित करते रहते हैं .....मैंने पूछा तो मेरे गुरुदेव कहाँ हैं .....कैसे मिलेंगे ..... अत्यंत सहजता से बोले ....अपने आप मिल जायेंगे ...मैंने अत्यंत अधीरता से पूछा कि लेकिन कैसे मिलेंगे ...बिना ढूंढें मिल जायेंगे ......उन्होंने कहा .......योग कब ढूँढा तुमने ...संस्कृत कब ढूंढी तुमने ...अपने आप ही मिल गए ना ...बस ऐसे ही गुरु भी मिल जायेंगे ... जो नियति में होगा वह सभी वस्तुए ...वे सारे व्यक्ति स्वं ही मिल जायेंगे .... नियति का यही तो अर्थ है ...जो निश्चित हो चूका है ...जो हो कर रहेगा .... जिसे बदला नहीं जा सकता .....मैंने फिर से आग्रह किया ...आप ही मुझे दीक्षा दे दें ......नहीं नहीं तुम्हारा गुरु ही तुम्हे दीक्षा देगा उन्होंने कहा .....तो मुझे इतना तो बता दीजिये कि मेरे गुरुदेव कहाँ मिलेंगे .......कुछ देर मौन रह कर वो बोले ...तुम्हारे गुरुदेव काशी में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं.........एक अद्भुत रोमांच हो आया ......काशी में ... मैंने अस्फुट से स्वर में कहा ........वे बोले ..हाँ , काशी में ......तुम्हारा सम्बन्ध एक बहुत पुरातन परंपरा से है .....उस विद्या के जानकार गुरु पृथ्वी पर बहुत कम हैं ....उस परम्परा में योग व संस्कृत के ज्ञान से तुम्हे सहायता मिलेगी ...इसलिए ...यही कारण है कि मैंने तुम्हे योग एवं संस्कृत का ज्ञान लेने के लिए कहा ............मुझे लग रहा था जैसे मैं कोई स्वप्न की सी अवस्था में सब सुन रही हूँ ......मैंने उनसे पूछा ...तो आगे मैं क्या करूँ ...प्रतीक्षा ...अभी प्रतीक्षा करो ....अभी समय नहीं आया है .....मैंने उनसे कहा कि क्या यहाँ वार्ताओं में आ सकती हूँ ....उन्होंने कहा ......अवश्य .....अवश्य आ सकती हैं यहाँ जो कुछ आप सीखेंगी उसका भी भविष्य में उपयोग होगा ....अतः अवश्य आती रहिये और सीखती रहिये .....इतना कह कर उस दिन वार्ता वहीं समाप्त हो गयी .....
उसके बाद मेरा योग एवं संस्कृत में बहुत मन लगने लगा । समय समय पर होने वाली वार्ताओं में मैं जाती रहती...वहां अध्यात्म के तमाम मार्गो पर गहन चर्चा होती रहती थी । इसके अलावा सामुद्रिक शास्त्र , ज्योतिष , स्वर शास्त्र , अंक विज्ञान , अंग लक्षण शास्त्र , शगुन विचार , प्रतीक विज्ञान , प्रतिमा विज्ञान .......अनेकानेक विज्ञानों के सम्बन्ध में बताया जाता था ... गुरुदेव भी बहुत से विज्ञानों के सम्बन्ध में उपयोगी सूत्र देते रहते थे । समय निकलता जा रहा था । वे कई बार लम्बे समय के लिए हिमालय यात्रा पर चले जाते थे ...बाद में मैंने यह परिवर्तन देखा कि उन्होंने भोजन में अन्न लेना छोड़ दिया ....और वे अक्सर मौन में ही रहते ....हम सभी लोग निश्चित समय में उनके आवास पर जाते ...और ध्यान में बैठते ....
एक दिन मेरे एक परिचित परिवार में एक उत्सव था और उसमे सम्मिलित होने के लिए मुझे काशी जाना था । मैंने गुरुदेव से कहा तो उन्होंने कहा ...क्षण आ गया है ....अवश्य जाइए ......मैं समझ गयी कि वे मेरे गुरुदेव के मिलने की घटना की और इंगित कर रहे हैं ...
कुछ दिनों के बाद मैं काशी में थी ...वहां आकस्मिक रूप से मेरे एक परिचित का फोन आया कि काशी में एक संस्कृत के एक अत्यंत प्रज्ञावान ग्यानी व्यक्ति रहते हैं । और मुझे उनसे जरूर मिलना चाहिए । उनका आवास बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में है ...और यह भी कहा कि वे प्रज्ञा चक्षु हैं अर्थात जन्मांध हैं .........उन्होंने मुझे उनका पता भी दिया । उस उत्सव की समाप्ति के बाद मैं उनसे मिलने के लिए गयी । आप लोग तो जानते ही हैं कि बनारस अपनी गलिओं के लिए प्रसिद्द है । वे घुमावदार संकरी गलियाँ ही मेरे लिए सौभाग्य का निमित्त बन गयी । मेरा रिक्शा वहां राह खो बैठा । लोगो से पूछते पूछते हम आगे बढ़ रहे थे । जिनसे भी पता पूछो तो वह यही जानना चाहता था कि वे करते क्यां हैं ......मेरा उत्तर होता था ...संस्कृत पढ़ाते हैं ....अचानक .एक व्यक्ति ने हमें बताया कि वह उन्हें जानता है ....और एक और इशारा करके बताया कि इस गली से आगे जाने पर उनका घर है । बहुत आगे जाने पर भी हमें उनका घर नहीं मिला । अचानक आगे एक आश्रम मिला । मैंने सोचा कि आश्रम में शायद कोई संस्कृत शिक्षक का पता बता दे । मैं रिक्शा रुकवा कर आश्रम में गयी । वहां कई सन्यासी थे ..एक से पूछा तो वह कहने लगे संस्कृत तो यहाँ भी सिखाई जाती है , वैसे यहाँ साधना कराइ जाती है । मैंने पूछा कौन सी साधना ....... उन्होंने जो उत्तर दिया वह सुन कर मेरा विस्मय पाताल जितनी गहराई में चला गया ....वह वही साधना विधि थी जिस परंपरा का उल्लेख लखनऊ में गुरु देव ने किया था ...मैंने तुरंत गुरुदेव को लखनऊ में फ़ोन किया । वे हंस कर कहने लगे ...जाओ अपने गुरुदेव से मिल लो ...मेरी आँखों में पानी सा तिरने लगा......
आश्रम के भीतर जाते ही लगने लगा कि जैसे अपना घर आ गया हो । अन्दर गुरुदेव के दर्शन किये .......गरिमा एवं आभा से पूर्ण ....८० वर्ष से भी ज्यादा की आयु .....मौन ......मैंने साधना दीक्षा के लिए प्राथना की । उन्होंने परिवार के बारे में पूछा , जन्म क्षण पूछा फिर कहा कि इस तिथी को आना ....तुम्हे दीक्षा मिल जायेगी ......मन उल्लासित हो गया ।
वापस लखनऊ आयी ...यहाँ गुरुदेव को सारी घटना बताई । उन्होंने बहुत सारा आशीर्वाद दिया और यह भी बताया कि वे पूर्ण रूप से एकांत में जा रहे हैं ॥ अब यहाँ वार्ताएँ समाप्त की जा रही हैं । मेरे यह कहने पर कि यदी मैं आगे इन विद्याओं को सीखना चाहूँ तो क्या करूँ ...उन्होंने हिमालय स्थित एक रहस्य विद्यालय का पता दिया ...जिसका एक कार्यालय लखनऊ में भी था ....कहा उसे ज्वाइन कर लेना ...और साधना करती रहना .......
मेरे जीवन का नया अध्याय आरम्भ हो चूका था ....मेरी साधना शुरू हो चुकी थी और साथ ही साथ रहस्य विद्यालय से गुह्य विज्ञान की शिक्षा भी ले रही थी .......गुरुदेव कभी कभी १ या २ दिन के लिए लखनऊ आते हैं तो उनका आशीर्वाद लेने जाती हूँ ....
आप लोगों के साथ जो सूत्र मैं शेयर करती हूँ वे सभी गुरुदेव तथा रहस्य विद्यालय से ही जाने हैं .
गुरुदेव की यह बात मेरे कानो में आज भी स्पष्ट रूप से गूंजती रहती है ......अनामिका ...यह भारत है ...तुम्हारा सौभाग्य है कि यहाँ जन्म हुआ है ....अपने जीवन को साधना से समृद्ध करो ............

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

गेरुए पन्ने

इस ब्लॉग का नाम ' गेरुए पन्ने ' ही क्युं रखा ...मेरे कई मित्रों ने मुझसे यह पूछा है । इसके पीछे कई कारण हैं , मुख्य कारण यह है कि मैं मुख्यतः अध्यात्म के सम्बन्ध में ही लिखना चाह रही थी और भारत में एक सन्यासी गेरुआ वस्त्र ही धारण करता है . गेरुआ रंग अध्यात्म से सम्बंधित व प्रतीक माना जाता है लेकिन फिर ' भगवा रंग ' क्युं नहीं चुना ...??? क्युंकी भगवा रंग भी भगवत्ता का ही प्रतीक होता है । इसका कारण यह है कि भगवत्ता तो कण कण में व्याप्त है और भगवत्ता का अक्सर ' अवतरण ' माना जाता है । अर्थात भगवत्ता... कहीं सुदूर अन्तरिक्ष .... किसी अज्ञात लोक से उतरती हुई मानी जाती है और गेरुआ रंग ..गेरू मिट्टी से बनाया जाता है । यह रंग 'मिटटी ' से जुड़ा हुआ है । इसमें यह संकेत है कि भारत का अध्यात्म जमीन से जुड़ा हुआ है ...वह ' आसमानों ' की अगर बात कर भी रहा है तो उसके पैर जमीन में मजबूती से जमे हुए हैं । भारत के आध्यात्मिक ज्ञान के ऊपर अक्सर यह प्रश्न खड़ा किया जाता है कि भारत का धर्म , अध्यात्म या फिर संस्कृति जिन आधारों पर खडी है वे काल्पनिक ज्यादा हैं , यथार्थ से कम सम्बन्ध है उसका । यह सब गलत प्रचार है भारत के आध्यात्मिक ज्ञान व संस्कृति के प्रति । इसलिए भी मैंने इस ब्लॉग का नाम ' गेरुए पन्ने ' रखा ,यह संकेत है कि भारत का आध्यात्मिक ज्ञान यथार्थ ज्ञान है , व्यवहारिक है एवं इस भूमि पर पूरी शक्ति के साथ खड़ा है । आने वाले दिनों में मैं पूर्ण प्रयास करूंगी कि भारत के तमाम कर्म कांडों , आध्यात्मिक साधनाओं के पीछे क्या तथ्य हैं ...क्या रहस्य हैं ...वह आप सभी के सामने आ सकें । और मुझे आप सभी का यह सहयोग चाहिए कि आप भी अपने चिंतन बिन्दुओं से मुझे जरूर अवगत करायेंगे , प्रश्न भी जरूर पूछेंगे ...मेरा प्रयास यह है कि हम सभी मित्रों के बीच एक संवाद निर्मित हो ....हम लोग पुनर्विचार करें इस देश की संस्कृति , धर्म व् अध्यात्म के बारे में । इस बात कि चिन्तना न करें कि उन प्रश्नों के उत्तर मुझे आते हैं या नहीं ....या किसी और को आते हैं या नहीं .....प्रश्न पूछे भी और साथ ही साथ उत्तरों को स्वं भी खोजे ....
कई और भी कारण हैं गेरुए पन्ने नाम रखने के पीछे ......उगते सूर्य का रंग भी गेरुआ होता है ....यह एक प्रार्थना है मेरी परमात्मा से कि हम सब के आतंरिक जीवन में ईश्वरीय सूर्य का जन्म हो ........ गेरुआ रंग गति का प्रतीक है ...हम सब का जीवन गतिशील बने लेकिन शुभत्व की दिशा में .........गेरुआ रंग अनासक्ति का भी प्रतीक होता है हम सभी अपने जीवन के सारे कर्तव्यों को अनासक्ति के साथ पूर्ण करे ....न आसक्ति के साथ ..और ना ही विरक्ति के साथ .....ग्रामीण अंचलों में किसी भी शुभ अवसर पर घर के बाहर ' गेरू ' से अल्पनायें बनाई जाती हैं ....अर्थात हम सबके आतंरिक एवं बाह्य जीवन में भी शुभत्व आये....
एक अंतिम बात और .....इस ब्लॉग को मैंने प्रारम्भ जरूर किया है लेकिन यह सिर्फ मेरा ब्लॉग नहीं है ....यह हम सबका ब्लॉग है ....अगर कोई मित्र किसी विषय पर कोई गंभीर जानकारी किसी लेख के माध्यम से हम सबके बीच रखना चाहते हैं तो वे मुझे जरूर अवगत करायें ....वह लेख उनके नाम के उल्लेख के साथ जरूर पोस्ट करूंगी
हाँ ...यदि किसी विशेष विषय पर मेरा कोई लेख चाह रहे हूँ तो भी अवश्य बतायें ..अगर वह विषय मेरे अधिकार क्षेत्र के भीतर है तो उस पर अवश्य लिखूंगी । आप सभी के जीवन में अनंत आनंद एवं अध्यात्म आये .......
.......सस्नेह
....अनामिका .